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आर्टिकल 15 : फिल्म समीक्षा

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'मैं और तुम इन्हें दिखाई ही नहीं देते हैं। हम कभी हरिजन हो जाते हैं तो कभी बहुजन हो जाते हैं। बस जन नहीं बन पा रहे कि जन गण मन में हमारी भी गिनती हो जाए। इंसाफ की भीख मत मांगो बहुत मांग चुके।' अनुभव सिन्हा निर्देशित आर्टिकल 15 के ये संवाद फिल्म में दर्शाई हुई विडम्बना और चीत्कार को दर्शाने के लिए काफी हैं। आज से 69 साल पहले संविधान के रचयिता डॉक्टर बाबा साहेब आंबेडकर द्वारा लिखे संविधान के अनुच्छेद 15 अर्थात 'आर्टिकल 15' में साफ लिखा गया है कि राज्य, किसी नागरिक के विरुद्ध केवल धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग, जन्मस्थान या इनमें से किसी के आधार पर कोई विभेद नहीं करेगा, मगर यह भेदभाव आज भी समाज में है और इस कदर भयानक तौर पर है कि एक वर्ग विशेष को उनकी औकात दिखाने के लिए न केवल उनकी बच्चियों के साथ सामूहिक बलात्कार किया जाता है बल्कि मार कर पेड़ पर लटका दिया जाता है। आईपीएस अधिकारी अयान रंजन (आयुष्मान खुराना) को मध्यप्रदेश के लालगांव पुलिस स्टेशन का चार्ज दिया जाता है। यूरोप से हायर स्टडीज करके लौटा अयान इस इलाके में आकर बहुत उत्सुक है, मगर अपनी प्रेमिका अदिति (ईशा तलवार) से मेसेजेस पर बात करते हुए वह बता देता है कि उस इलाके में एक अलग ही दुनिया बसती है, जो शहरी जीवन से मेल नहीं खाती। अभी वह वहां के माहौल को सही तरह से समझ भी नहीं पाया था कि कि उसे खबर मिलती है कि वहां की फैक्टरी में काम करनेवाली तीन दलित लड़कियां गायब हैं, मगर उनकी एफआरआई दर्ज नहीं की गई है। उस पुलिस स्टेशन में काम करनेवाले मनोज पाहवा और कुमुद मिश्रा उसे बताते हैं कि इन लोगों के यहां ऐसा ही होता है। लड़कियां घर से भाग जाती हैं, फिर वापस आ जाती हैं और कई बार इनके माता-पिता ऑनर किलिंग के तहत इन्हें मार कर लटका देते हैं। दलित लड़की गौरा (सयानी गुप्ता) और गांव वालों की हलचल और बातों से अयान को अंदाजा हो जाता है कि सच्चाई कुछ और है। वह जब उसकी तह में जाने की कोशिश करता है, तो उसे जातिवाद के नाम पर फैलाई गई एक ऐसी दलदल नजर आती है, जिसमें राज्य के मंत्री से लेकर थाने का संतरी तक शामिल है। आर्टिकल 15 मूवी रिव्यू अयान पर गैंग रेप के इस दिल दहला देनेवाले केस को ऑनर किलिंग का जामा पहनकर केस खोज करने के लिए दबाव डाला जाता है, मगर अयान इस सामाजिक विषमता के क्रूर और गंदे चेहरे को बेनकाब करने के लिए कटिबद्ध है। निर्देशक अनुभव सिन्हा के निर्देशन की सबसे बड़ी खूबी यह है कि उन्होंने जातिवाद के इस घिनौने रूप को थ्रिलर अंदाज में पेश किया और जब कहानी की परतें खुलने लगती है, तो दिल दहल जाने के साथ आप बुरी तरह चौंक जाते हैं कि इन तथाकथित सभ्य, परिवारप्रेमी और सफेदपोश किरदारों का असली रूप क्या है? फिल्म का वह दृश्य झकझोर देनेवाला है, जब अयान को पता चलता है कि मात्र तीन रुपये ज्यादा दिहाड़ी मांगने पर लड़कियों को रेप कर मार दिया गया। फिल्म में द्रवित कर देनेवाले ऐसी कई दृश्य हैं। निर्देशक ने फिल्म को हर तरह से रियलिस्टिक रखा है। आयुष्मान खुराना की फिल्म 'आर्टिकल 15' का ट्रेलर इवान मुलिगन की सिनेमटोग्राफी में फिल्माए गए कुछ दृश्य आपको विचलित कर देते हैं। मुंह अंधेरे फांसी देकर पेट पर लटकाई गई लड़कियों वाला दृश्य हो या फिर मजदूर द्वारा नाले के अंदर जाकर सफाई करनेवाला दृश्य। निर्देशन और सिनेमटोग्राफी की तरह दिल में घाव करनेवाले डायलॉग भी कम चुटीले नहीं हैं। दलित नेता जीशान अयूब का संवाद ' ये उस किताब को नहीं चलने देते जिसकी शपथ लेते हैं। इस पर आयुष्मान कहते हैं 'यही तो लड़ाई है उस किताब की चलानी पड़ेगी उसी से चलेगा ये देश।' बहुत कुछ सोचने पर मजबूर कर देते हैं। मंगेश धाकड़े का संगीत प्रभावशाली है। समर्थ कलाकारों का अभिनय फिल्म का आधार स्तंभ है। एक हैंडसम, निर्भय और फर्ज को लेकर कटिबद्ध पुलिस अधिकारी के रूप में आयुष्मान खुराना ने करियर के इस पायदान पर बेहतरीन अभिनय किया है। उनके अभिनय की विशेषता रही है कि उन्होंने इसे कहीं भी ओवर द टॉप नहीं होने दिया। अपने किरदार को बहुत ही खूबसूरती से अंडरप्ले किया है। गौरा के रूप में सयानी गुप्ता ने शानदार अभिनय किया है। जीशान अयूब छोटे से रोल के बावजूद असर छोड़ जाते हैं। मनोज पाहवा और कुमुद मिश्रा का अभिनय लाजवाब है। किशोरी अमली का किरदार निभाने वाली अभिनेत्री ने सहज अभिनय किया है। ईशा तलवार को स्क्रीन स्पेस कम मिला है, मगर उन्होंने अपनी भूमिका के साथ इंसाफ किया है। क्यों देखें-समाज को आईना दिखानेवाली इस रियलिस्टिक और थ्रिलर फिल्म को जरूर देखें।

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Movie Review: जातिवाद और सिस्टम पर सवाल उठाती है 'आर्टिकल 15', आयुष्मान ने एक्टिंग से जीता दिल

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Article 15 movie review: Ayushmann Khurrana hunts for inconvenient truths in an essential film

Article 15 movie review: anubhav sinha and ayushmann khurrana’s film has the stench of honesty. it as asks you questions you already know but don’t ask yourselves enough. rating: 4.5 stars..

Article 15 Director : Anubhav Sinha Cast: Ayushmann Khurrana, Manoj Pahwa, Kumud Mishra, Sushil Pandey, Sayani Gupta, Mohammad Zeeshan Ayyub Rating: 4.5/5

Article 15 movie review: Ayushmann Khurrana’s film is a reminder that we already know the questions but don’t ask them enough

The posting was a punishment. Ayan Ranjan, newly minted Indian Police Service officer, the tuck of his shirt crisp as a new banknote, readily admits the reason he’s sentenced to the bleak badlands of Uttar Pradesh. Ranjan had agreed with a senior officer without sounding officious enough — he had said “Cool, sir”, a yes-man forgetting his only line — and the perceived insubordination was enough to land him in a world where half the people don’t touch the other half.

Article 15, Anubhav Sinha ’s searing film about the indignities endorsed by the caste-system in modern day India, does not play it cool. Inspired by the real-life Badaun killings — and a stirring tribute to Alan Parker’s 1988 procedural thriller Mississippi Burning — this film features policemen hushing up the murder and gangrape of three 15-year-old girls because they belong to a lowered caste. Us, and Them. It is a grim, unrelenting and essential film, one throwing up truths we choose to forget.

 Also Watch | Public Review of Article 15 | Ayushmann Khurrana | Anubhav Sinha  

“Welcome to Page 7 India,” says Ranjan’s wife, when he calls and texts her, his eyes wide with newly discovered outrage at the plight of the Dalits and the downtrodden in middle India. Reports about these atrocities are relegated to the little-read middle of the paper, far from the front and sport pages. Ayan, a young Brahmin who likes his single malt, and walks around with a holster suavely sticking out from underneath a well-cut blazer, feels as much a stranger to that locale as an Englishman. The policemen below him are keen to make sure he isn’t some young fool out to change the system after watching too many renegade cop movies starring Ajay Devgn. ‘They get transferred,’ grunt old cops in the know, ‘while we get killed.’ Us, and Them.

Written by Gaurav Solanki and Sinha, the film has the stench of honesty. It is hauntingly shot by Ewan Mulligan, who slides through the shadows to zero in on acute specifics: the breakfast prepared before a murder, the everyday banality of a crime scene, and — most unforgettably — a man cleaning a filthy black drain. He cleans our world because we won’t do it ourselves.

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As policemen plod through a marsh, Ranjan asks about politics, and the men good-humouredly state why they vote for the Elephant one year and the Cycle the next, and for the parties their mothers told them to always vote for. Rebels use Whatsapp, while cops keep tabs on activism by seeing what messages are being forwarded. The filmmakers cannily use texting to educate the leading man, the messages from his level-headed wife becoming the voice in his head. We do not need a hero, she insists. We just need people to stop waiting for a hero.

Ayushmann Khurrana plays Ranjan with inevitable entitlement. His elitist indignation while barking orders gets things done, but also distances him from the policemen answering to him. In one remarkable scene he matter-of-factly asks the cops about their places — and his own, for he is privileged enough not to know — in the caste hierarchy, and the distinctions between caste-and-Kayastha are maddening. One of them says he is a Jaat, and was ‘normal,’ but has now been granted Other Backward Class status, while Jaats in other states have not. This is illegal. Ranjan asking them their caste, I mean. Not the division, but the pronouncement of it.

Khurrana is spot-on, consistently harrowed and, building on the everyman baggage of his earlier films, immensely relatable. He eschews showiness to stay true to the part, a protagonist who is aware he will be looked on as an upper-caste saviour, aware that it isn’t his role.

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Sinha surrounds him with a superb ensemble. Manoj Pahwa is frighteningly good as a higher-caste cop. Berating a junior, he clenches his teeth so hard it feels like he doesn’t trust himself to open his mouth, for fear of biting someone of a lower status. Top performances come also from Sushil Pandey as a lowly policeman who seems like the nicest bloody guy; Kumud Mishra as the son of a sweeper who is now a policeman (yet relentlessly reminded of his background); and Sayani Gupta as sister to one of the missing girls, her gigantic plaintive eyes an indictment of India itself.

The mercurial Mohammad Zeeshan Ayyub plays a revolutionary, a rebel who can’t afford to lose hope because he has become a face of it. He gets the film’s most memorable lines, achingly confessing how he has been so romanticised that he is left without romance. With the horrors around, it felt criminal for him to smile at a girl he loves. In the land that allows Us and Them, all pleasure feels guilty.

What do you do when the system is the bad guy? There are no revelations here. We’ve read about such cases, we’ve sighed about these horrors. Article 15 is not a film in search of easy answers. It is instead a reminder that we already know the questions, but don’t ask them enough. Not cool, sir.

(The opinions expressed within this article are the personal opinions of the author. They do not reflect the views of Hindustan Times.)

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Raja Sen is a film critic. He reviews Hindi films for Hindustan Times ...view detail

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आर्टिकल 15 Review: देश की जड़ में फैले कास्ट सिस्टम को दिखाती डार्क फिल्म

अनुभव सिन्हा की नई फिल्म आर्टिकल 15 देश में हजार सालों से फैले कास्ट सिस्टम पर करारा प्रहार है. इस मूवी में आयुष्मान खुराना लीड रोल में हैं. जानिए कैसी बनी है फिल्म....

आर्टिकल 15 के एक सीन में आयुष्मान

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फिल्म: Article 15

किसी शख़्स की औकात क्या होती है? आर्टिकल 15 के एक सीन में जब एक पुलिस वाला एक ठेकेदार से ये सवाल करता है तो वो कहता है कि 'हमारे यहां काम करने वालों की औकात वही होती है, जो हम तय करते हैं. सबकी कोई ना कोई औकात होती ही है.'

आम भाषा में बात की जाए तो ये औकात दरअसल किसी भी शख़्स की आर्थिक स्थिति, समाज में उसके रूतबे और उसकी जाति द्वारा निर्धारित होती आई है. हर समुदाय की अपनी खुद की दिक्कतें हैं लेकिन आज भी समाज में एक बड़ा तबका ऐसा है जो घोड़ी चढ़ने पर, ऊंची जाति के कुओं से पानी भरने पर, कुर्सी पर बैठकर खाना खाने करने पर हड्डियों को तुड़वाता है या अपनी जान से हाथ धो देता है. आर्टिकल 15 समाज के इसी सबसे निचले पायदान पर मौजूद तबके की बात करती है.

यूरोप में एक लंबा दौर बिता चुके अयान रंजन पारंपरिक एनआरआई की तरह अपने देश से प्यार करते हैं. वे अपने देश की दिलचस्प कहानियों को अपने यूरोपियन दोस्तों को सुनाते हुए गर्व महसूस करते हैं, बॉब डिलन के गाने सुनते हैं और एक खास प्रीविलेज के साथ अपना जीवन बिताते आए हैं. अयान की पोस्टिंग एक गांव में होती है जहां दो लड़कियों का बलात्कार हुआ है और उन्हें पेड़ से लटका दिया गया है. पुलिस प्रशासन इस केस को रफा दफा करने का भरसक प्रयास करती है. अयान के लिए ये एक तगड़ा कल्चरल शॉक होता है. उसे अपने देश की एक अलग तस्वीर दिखती है जो उसके सपनीले भारत की तस्वीर से कहीं ज्यादा स्याह और धुंधली है मगर वो इस केस की तह तक जाता है और इस पूरी यात्रा में उसे कई कड़वी सच्चाईयों का सामना करना पड़ता है.

आयुष्मान खुराना इस फिल्म से पहले तक कई ऐसी फिल्मों में नज़र आए हैं जिनमें हंसी ठिठोली के बीच सोशल मुद्दों के बारे में बातें की जाती रहीं पर इस फिल्म में डार्कनेस का स्तर बेहद तीव्र है और फिल्म की सिनेमाटोग्राफी उसी तीव्रता को पर्दे में दिखाने में कामयाब रही है. डरावने बैकग्राउंड म्यूजिक के साथ सर्दियों की धुंध के बीच लटकते लड़कियों के शव सिहरन पैदा करते है वही एक सीन में बिना किसी सुरक्षा के मैनहोल में घुसते शख्स के सहारे अनुभव लोगों को अनुभव कराना चाहते हैं कि समाज का एक हिस्सा आज भी हमारी अनभिज्ञता के चलते बुरी तरह प्रताड़ित है.

कुछ जगहों पर फिल्म में काफी मेलोड्रामा भी है मसलन अयान बच्चियों को न्याय दिलाना चाहता है और उसे सिस्टम से भी खास परेशानियां देखने को नहीं मिलती है. जबकि देश में कई ऐसे मामले हैं जब सिस्टम के खिलाफ जाने के चलते कई ईमानदार अफसरों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा है. कहा जा सकता है कि बॉलीवुड फिल्मों की रील लाइफ से ज्यादा डरावनी कभी-कभी रियल लाइफ होती है.

फिल्म के हीरो मनोज पाहवा है. उन्होंने एक ऐसे पुलिसवाले का रोल निभाया है जो जानवरों से प्यार करता है लेकिन इंसानों के लिए उसमें क्रूरता भरी हुई है. पिछले कुछ समय में सेक्रेड गेम्स के पुलिस किरदारों के बाद मनोज के किरदार में ग्रे शेड्स हैं और अंत तक उनका किरदार प्रासंगिक बना रहता है. वही आयुष्मान खुराना और कुमुद मिश्रा ने भी अच्छी एक्टिंग की है.

आयुष्मान और उनकी गर्लफ्रेंड के बीच संवाद जाहिर करते हैं कि मॉर्डन दौर में कोई अपर क्लास शहरी लड़का भारत की अंतड़ियों में फैले कास्ट सिस्टम के जहर से कैसे डील करता है वही कुमुद-मनोज पाहवा के सहारे पुलिस प्रशासन में फैले जातिवाद सिस्टम की डार्क रियैल्टी भी देखने को मिलती है. सयानी गुप्ता मेकअप और लुक से गांव की लड़की लगती है लेकिन बोली और बॉडी लैंग्वेज में शहरीपन नज़र आता है जो अखरता है. फिल्म में बैकग्राउंड म्यूजिक कुछ जगहों पर मारक साबित होता है हालांकि कुछ जगहों पर इसकी बिल्कुल जरूरत महसूस नहीं होती. दलित नेता चंद्रशेखर से प्रभावित किरदार में मोहम्मद जीशान अयूब  ने अच्छा काम किया है. फिल्म में अयूब का कैरेक्टर ज्यादा बड़ा नहीं है लेकिन कैसे एक्टिविस्म की दुनिया में शामिल होने के बाद आम जिंदगी से ऐसे नेताओं का नाता टूट जाता है, इस पीड़ा को जीशान दिखाने में कामयाब रहे हैं.

फिल्म के कई हिस्सों में मौजूदा दौर के राजनीतिक भूचाल को प्रतीकात्मक तरीके से दिखाया गया है. ब्राह्राणों-दलितों की एकता को भुनाता एक राजनेता, इस एकता के खिलाफ खड़ा एक दलित नेता, मरी गाय का चमड़ा छीलने पर पिटते दलितों जैसे कई सीन्स ऐसे हैं जो मौजूदा समय की राजनीति के कई पहलुओं को भी दिखाते हैं. एक ऐसे दौर में जब छद्म राष्ट्रवाद से प्रेरित कई फिल्में बॉलीवुड में रिलीज़ हो रही हैं, अनुभव इस फिल्म के सहारे लोगों के सामने उसी कड़वी सच्चाई को परोसते हैं जो सालों से देश को खोखला करती आई हैं. ये फिल्म लोगों के बीच कास्ट सिस्टम को लेकर जागरूकता फैलाने का काम कर सकती है लेकिन ये कितनी असरदार होगी, ये फैसला लोगों को ही करना है. एक ऐसे दौर में जब देश का एक बड़ा हिस्सा पानी के संकट से ज्यादा दूर नहीं है, 15 बड़े शहर दुनिया के सबसे ज्यादा प्रदूषित शहरों में आते हैं, बेरोजगारी दर कई दशकों में सबसे ज्यादा है, ग्लोबल वार्मिंग जैसी समस्या मुंह बाए खड़ी है, ऐसे दौर में अब नई चुनौतियों से जूझने के लिए पुरानी समस्याओं को पूरी तरह से खत्म कर देना जायज है.  

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संविधान का आर्टिकल 15 क्या है ( What is Article 15 of Indian constitution and Movie review in hindi)

संविधान का आर्टिकल 15 क्या है, आयुष्मान खुराना की फिल्म आर्टिकल 15 रिव्यु ( what is article 15 of indian constitution and ayushmann khurrana’s article 15 movie review in hindi).

भारत एक सेक्युलर, डेमोक्रेटिक और रिपब्लिक देश हैं, जिसमें ऐसे संविधान का निर्माण किया गया हैं, जो देश के प्रत्येक वर्ग को  विशेष ध्यान रखता हैं और किसी भी प्रकार का भेद-भाव या अन्याय नहीं होने देता हैं, और इसी दिशा में संविधान में संशोधन भी समय-समय पर होते रहते हैं. भारत के संविधान में तीसरे पार्ट के अंतर्गत आर्टिकल 15 हैं, जो कि देश के आम नागरिकों के मौलिक अधिकारों और समानता के अधिकारों के सम्बंध में हैं.

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संविधान का आर्टिकल 15 क्या हैं?? (What is Article 15 of Indian constitution)

संविधान में आर्टिकल 15 को देश में किसी भी तरह के भेद-भाव को मिटाने के लिए बनाया गया हैं. इसमें सबको समान अधिकार दिया गया हैं फिर  व्यक्ति चाहे जिस धर्म, जाति, रंग, लिंग, जन्मस्थान का हो. हालांकि देश में सामाजिक और शैक्षिक विकास को ध्यान में रखकर पिछड़े वर्ग, महिलाओं और बच्चों के लिए कुछ विशेष प्रावधान बनाये जा सकते हैं.  इसे समझने के लिए भारतीयों के मूलभूत अधिकारों की परिभाषा समझना भी आवश्यक हैं, क्योंकि ये आर्टिकल ना केवल मौलिक अधिकारों की रक्षा करता हैं, बल्कि इन मौलिक अधिकारों के हनन होने स्थिति में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गये न्याय पर या फिर बदलती परिस्थितियों में इन अधिकारों की रक्षा हेतु सदन में प्रस्ताव के पारित होने पर भी इस आर्टिकल में कुछ संशोधन  हुए है.

मौलिक अधिकार क्या हैं? (What is Fundamental Rights)

आर्टिकल 15 का इतिहास और संरचना ( History and Structure of Article 15)

भारत के संविधान में आर्टिकल 15 (जिसका ड्राफ्ट आर्टिकल 9 था) पर डिबेट 29 नवम्बर 1948 को संविधान सभा में की गयी. सभा इस ड्राफ्ट पर एकमत नहीं थी और कुछ बदलाव चाहती थी. कुछ का कहना था कि इस ड्राफ्ट में परिवार और वंश के आधार पर भेदभाव की बात नहीं हुयी हैं, जबकि कुछ उद्यानों, सड़क और ट्राम-वे को आम लोगों के लिए चाहते थे. इन बिन्दुओं के आधार पर ड्राफ्ट आर्टिकल में कुछ जगह रखी गयी. वास्तव में आर्टिकल में उपयोग की गयी भाषा पब्लिक प्लेसेज को जनरलाइज करती थी, इसके अतिरिक्त ड्राफ्ट आर्टिकल के क्लॉज़ में महिलाओं और बच्चों के लिए विशेष प्रावधान रखे गए थे, इसी तरह अनुसूचित जाति और जनजाति के लिए भी प्रस्ताव देते हुए ये तर्क दिया गया कि ये दृष्टिकोण अनुसूचित जाति और जनजाति के साथ होने वाले अलगाववाद को समाप्त कर देगा. आर्टिकल 15(1), (2a) और(2b), (3), को भारत के 1949 के संविधान के अनुसार लागू किया गया था.

आर्टिकल 15 संरचना

आर्टिकल 15 (1) : इसके अनुसार राज्य किसी भी नागरिक के साथ धर्म, रंग, जाति, लिंग, जन्मस्थान या इनमे से किसी भी आधार पर भेदभाव नहीं करेगा.

आर्टिकल 15 (2a): धर्म, रंग, जाति, लिंग, जन्मस्थान को आधार बनाकर किसी भी व्यक्ति को दूकान, होटल, रेस्टोरेंट, मनोरंजन के स्थान या अन्य किसी भी स्थान पर रोका जायेगा.

  आर्टिकल 15 (2b): किसी भी व्यक्ति को कुंए, बावड़ी, घाट, पब्लिक रिसोर्ट या किसी भी पब्लिक प्लेस के उपयोग से रोका नहीं जाएगा, चाहे वो पूरी तरह से राज्य सरकार द्वारा बनाये हो या सरकार का आंशिक योगदान हो.

आर्टिकल 15 (3) –  भारत के संविधान में ये आर्टिकल सुरक्षा सम्बंधित मामलों को देखने के लिए शामिल किया गया हैं, इसमें महिलाओं और बच्चों की सुरक्षा का विशेष ध्यान रखा गया हैं. इस आर्टिकल में कुछ भी राज्य को महिलाओं और बच्चों के लिए विशेष प्रावधान बनाने से नहीं रोकेगा.

आर्टिकल 15 (4) –  ना तो इस आर्टिकल में ना ही आर्टिकल 29 के क्लॉज़ (2) में कुछ भी राज्य को अनुसूचित जाति एवं जनजाति के सामजिक और शैक्षिक सुधार और उन्नति के लिए विशेष प्रावधान बनाने से रोकेगा. इसमें राज्य को समाज के पिछड़े वर्ग, अनुसूचित जाति,जनजाति की शिक्षा हेतु और सामजिक विकास का ध्यान रखा गया हैं.

ये क्लोज 1951 में स्टेट ऑफ़ मद्रास और चम्पकम दोराईराजन  के मध्य चल रहे केस पर सुप्रीम कोर्ट के निर्णय पर संविधान में जोड़ा गया था.

आर्टिकल 15 (5) –  सदन ने संविधान में 93 व संशोधन करते हुए आर्टिकल 15(5) का प्रस्ताव  2005 में रखा था, जिसके अनुसार अनुसूचित जाति और जनजाति एवं सामजिक और आर्थिक पिछड़े वर्ग (सोशली एंड एज्युकेश्नली बैकवार्ड क्लासेज-एसईबीएस) को  शिक्षा में समान अवसर दिलाने के लिए शैक्षिक संस्थाओं में आरक्षण दिया जाए. इस आर्टिकल में शैक्षिक संस्थाओं में प्रवेश के लिए आरक्षण से देश को सशक्त बनाने का प्रयास किया गया हैं, शैक्षिक संस्थाओं में निजी, सरकारी और अर्द्ध-सरकारी सभी  संस्थाएं शामिल हैं. इस आर्टिकल में केवल अल्पसंख्यक समुदाय द्वारा संचालित मदरसे को बाहर रखा गया हैं.

ये क्लोज 2006 में 93वें संशोधन में संविधान में जोड़ा गया. इसमें भी पीए इनामदार और स्टेट ऑफ़ महाराष्ट्र के मध्य चले केस पर सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का प्रभाव रहा.

     इस तरह ये भी 3 और 4 के क्लॉज के जैसा ही हैं, लेकिन यहाँ नियम कानून के अनुसार बने ना कि किसी एग्जिक्यूटिव ऑर्डर से बने इसके साथ ये भी सच हैं कि आर्टिकल 15 (3) और आर्टिकल 15 (4) दोनों देश में आरक्षण के सन्दर्भ में मील का पत्थर साबित हुए हैं.

आर्टिकल 15 (6)

जनवरी 2019 में संविधान के 103वें संशोधन एक्ट का प्रस्ताव पारित किया गया हैं, जिसमें आर्टिकल 15 में संशोधन होकर 15(6) बना हैं. ये आर्टिकल आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग को सभी शैक्षिक संस्थाओं में प्रवेश के लिए बनाया गया हैं, फिर चाहे वो राज्य द्वारा एडेड हो या अनएडेड (aided or unaided by the State) हो. ये संशोधन उन लोगों को आरक्षण देने के लिए किया गया हैं, जो आर्टिकल 15 (5) और आर्टिकल (4) में शामिल नहीं थे.

आयुष्मान खुराना की आने वाली फिल्म आर्टिकल 15 (Ayushmann Khurrana’s Article 15 Movie review)

2019 के शुरुआत में हुए संशोधन के अलावा इन दिनों आर्टिकल 15 आयुष्मान खुराना की आने वाली फिल्म के लिए भी चर्चा में हैं. अनुभव सिन्हा की ये फिल्म उत्तरप्रदेश में बदाऊ की सत्य घटना पर आधारित हैं जिसमें दो दलित महिलाओं के साथ सामूहिक बलात्कार के बाद हत्या हुयी थी. फिल्म में दिखाया गया हैं किस तरह से दिहाड़ी में मात्र तीन रूपये मांगने पर दो लडकियों का बलात्कार करके उन्हें मारकर लटका दिया जाता हैं, जिससे कि उनके समाज में खौंफ बना रहे. केस का इवेस्टीगेशन करने वाले ब्राह्मिन इंस्पेक्टर का किरदार आयुष्मान खुराना निभा रहे हैं, जो ना केवल निष्पक्ष जाँच करते हैं बल्कि समाज के कई कडवे रहस्यों को भी उजागर करते हैं. मूवी का नाम आर्टिकल 15 इसीलिए रखा गया हैं क्योंकि ये फिल्म वर्तमान भारत में आर्टिकल 15 में बताये गये समता के अधिकार और इसके अस्तित्व पर सवाल लगाती हैं.

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जातिगत भेदभाव को बखूबी दिखाती है थ्रिलर आर्टिकल 15, आयुष्मान ने किया जबर्दस्त काम

आयुष्मान खुराना आर्टिकल 15 के एक सीन में। - Dainik Bhaskar

शुभा साहा शेट्टी/बॉलीवुड डेस्क.  डायरेक्टर अनुभव सिन्हा की फिल्म आर्टिकल 15 जातिवाद को दर्शाने का एक बेहतरीन और दिलचस्प दृष्टिकोण है। भारत में हम कई क्षेत्रों में प्रगति कर रहे हैं, लेकिन समाज में अब भी जाति, धर्म और लिंग को लेकर ज्यादिती होती है। फिल्म इस बात का बेधड़क पर्दाफाश करती है। यह फिल्म इसलिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह वो सब बताती है, जिनके बार में लोग दिखाने या बात करने से भी हिचकिचाते हैं। 

1) थ्रिलिंग कहानी जातिगत भेदभाव को बखूबी दिखाती है

देश में जाति को लेकर हो रहे भेदभाव को सिन्हा थ्रिलिंग कहानी के जरिए बखूबी बताते हैं। ईमानदार आईपीएस ऑफिसर अयान रंजन (आयुष्मान खुराना) का तबादला लालगांव में जाता है। पद संभालते ही उन्हें पता चलता है कि गांव की तीन लडकियां गायब हैं। उसे यह देखकर ताज्जुब होता कि उसके सह-कर्मचारी (मनोज पाहवा और कुमुद मिश्रा) को इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि लड़कियां मिल नहीं रहीं। जब उनमें से दो लड़कियां पेड़ से लटकी पाई जाती हैं तो अयान और परेशान हो जाता है।

उसे धीरे-धीरे पता चलता है कि लड़कियां छोटी जाति की हैं। इसलिए उनके साथ हुए दुष्कर्मों के खिलाफ कोई इंसाफ नहीं मांगना चाहता। अयान न्याय के लिए लड़ना चाहता है और तीसरी लड़की को ढूंढ निकालना चाहता है, लेकिन आसपास की परिस्थितियां उसके हाथ बांध देती हैं।

सिन्हा ने पहले मुल्क डायरेक्ट की थी, जो धर्म के कारण होने वाले भेदभाव पर जोर डालती है। अब उन्होंने जातिवाद के खिलाफ बहुत ही दिलचस्प कहानी लिखी है। सिन्हा के साथ मिलकर लिखा गया गया गौरव सोलंकी का स्क्रीन्प्ले डार्क विषय को भी हास्य और दमदार डायलॉग्स के जरिए मनोरंजक बनाए रखता है। 

सिनेमैटोग्राफी और बैकग्राउंड म्यूजिक की खासतौर पर तारीफ करनी चाहिए। सिनेमैटोग्राफी इवान मुलिगन ने की है और बैकग्राउंड म्यूजिक मंगेश धकड़े का है। दोनों विषय के हिसाब से सटीक हैं और फिल्म बेहतरीन बनाते हैं। 

फिल्म की मजबूत कड़ी इसकी स्टारकास्ट भी है। सिन्हा ने काफी अच्छे एक्टर्स को चुना है। आयुष्मान अयान के किरदार में एकदम फिट बैठते हैं। उन्होंने बेहद ईमानदारी से अपना किरदार निभाया है। मनोज पाहवा, कुमुद मिश्रा जैसे बेहतरीन एक्टर्स को रोचक किरदार दिए गए हैं और उन्होंने इन्हें बखूबी निभाया है। 

ईशा तलवार और सयानी गुप्ता ने अच्छा काम किया है। मोहम्मद जीशान अयूब एक छोटे, लेकिन पावरफुल किरदार में हैं। वो निषाद के रोल में हैं, जो कि बागी होकर जातिवाद के खिलाफ लड़ता है। उन्होंने जबर्दस्त काम किया है। 

यह फिल्म जरूर देखें, क्योंकि यह समाज को आइना दिखाती है। फिल्म सच दिखाने से नहीं कतराती, इसलिए ऐसी फिल्मों को बढ़ावा देना चाहिए। 

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sdgupta295 934 days ago

Fabulous.Seen the movie 8 times.Just love it.

Devang Gauswami 974 days ago

master piece

vishu katiyar 990 days ago

Fantastic movie

viru rok 453 999 days ago

Must watch it.It reveal out evils of society nice to see ayushman again with a special film.

Arnab Ghosh 1006 days ago

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